मान लो कि गुड्स निर्माता किसी वस्तु का निर्माण करता है और उसकी कॉस्ट 80 रुपये की आती है , अब इस 80 रुपये की वस्तु में 20 खुद का प्रॉफिट जोड़कर वह 100 में बेचता है ।
अगर इस वस्तु पर 28 % की जीएसटी रेट लगती है, तो निर्माता 100 रुपये पर 28 % जीएसटी लगाकर थोक विक्रेता को बेचता है ।
थोक विक्रता के माल 128 का पड़ेगा , लेकिन जो उसने 28 रुपये जीएसटी के चुकाए है, उनकी वह इनपुट टैक्स क्रेडिट ले लेगा , तो उसके गुड्स की कीमत 100 रुपये की हो जाएगी ।
अब थोक विक्रेता पहले तो 100 रुपये की कीमत में खुद का प्रॉफिट जोड़ेगा, क्योकि 100 के लागत की वस्तु को 100 में बेचकर थोक विक्रेता को क्या बेनिफिट होगा ?
अब मान लीजिए थोक विक्रेता 100 की वस्तु में 20 का प्रॉफिट जोड़ता है और 120 रुपये में आगे ट्रेडर को सेल करता है, तो उसे 120 पर 28 % की जीएसटी लगाना होगा ।
थोक विक्रेता का बिल कुछ इस प्रकार का होगा
सेल वैल्यू – 120
जीएसटी (28%) – 33.60
टोटल बिल – 153.60
थोक विक्रेता को निर्माता को दिए गए जीएसटी की इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलने की वजह से सिर्फ अपने प्रॉफिट पर ही जीएसटी का पेमेंट करना होगा, जैसे –
जीएसटी ( ट्रेडर से लिया) – 33.60
जीएसटी( निर्माता को दिया) – 28
सरकार को जीएसटी देना होगा – 5.60 (33.60–28)
अब इसी तरह ट्रेडर भी गुड्स में अपना प्रॉफिट जोड़ेगा और इसे आगे सेल करेगा और जीएसटी कलेक्ट करेगा । इसके बाद गुड्स की खरीददारी में चुकाए गए जीएसटी की टैक्स क्रेडिट लेगा और बैलेंस अमाउंट सरकार को चुकाएगा ।
यह सिस्टम तब तक चलता रहेगा जब तक गुड्स या तो कस्टमर नही खरीद लेता या कोई जीएसटी में अनरजिस्टर्ड पर्सन इसे खरीद लेता है।
इस तरह जीएसटी सिर्फ हर स्टेज पर प्रॉफिट एडिशन पर ही लगाया जाएगा और जीएसटी अमाउंट पर जीएसटी नही लगाया जाएगा ।
इसलिये जीएसटी सिर्फ कॉस्ट प्लस प्रॉफिट अमाउंट पर ही लगेगा । और पिछले स्टेज पर जो जीएसटी आपने चुकाया है, उसकी टैक्स क्रेडिट आप क्लेम कर सकते है ।
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