Raipur// छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने भ्रष्ट अफसरों को सबक सिखाया है। अफसर जमीन के रजिस्ट्री होते ही जमीन के नामांतरण करने के सिस्टम के खिलाफ थे और हड़ताल पर जाने की तैयारी कर रहे थे। वॉट्सऐप पर मैसेज भेजे जाने लगे। ये बात मंत्री OP चौधरी को पता लगी।
उन्होंने इसके पीछे शामिल अफसरों को मंत्रालय बुलवाया। पुरानी गड़बड़ियों की डिटेल निकलवाई। फाइल भी बनवाई। फाइलें अधिकारियों के सामने रखकर कहा कि, आगे हो रहे अच्छे बदलाव में सहयोग करें। पुराने मामलों से मुझे मतलब नहीं। वरना मजबूरन फाइल ACB-EOW को देनी पड़ेगी। अफसर इस बात को समझ गए और उन्होंने स्ट्राइक के मैसेज डिलीट करने लगे।
मंत्री ओपी चौधरी ने जमीन रजिस्ट्री से जुड़ी कई अहम जानकारियां दी हैं
सवाल- जमीन रजिस्ट्री सिस्टम के बदलाव के पक्ष में क्यों नहीं थे अफसर?
जवाब- अफसर इसलिए नाराज थे क्योंकि सरकार रजिस्ट्री होते ही रजिस्ट्री दफ्तर में उसी वक्त जमीन का नामांतरण भी करने का सिस्टम ला रही थी। इससे लोगों का समय बच रहा था, और नामांतरण के लिए होने वाली घूसखोरी पर नकेल कसने जा रही थी।
सवाल- जमीन रजिस्ट्री सिस्टम में क्यों बदलाव करना पड़ा?
जवाब- नो इकोनॉमी नो कंट्री नो सोसाइटी हैज बिकम ग्रेट विद आउट अडॉप्टिंग टेक्नोलॉजी एंड रिफॉर्म। रिफॉर्म से सिस्टम भागेगा तो अच्छे बदलाव नहीं होंगे। जमीन की रजिस्ट्री के बाद नामांतरण के लिए आदमी भटकता था। हर किसी ने जीवन में इसे झेला है।
कई तरह की शिकायतें आती थीं। किसी और कि जमीन किसी और ने बेच दी, लैंड पर लोन है किसी और का और जमीन बिक गई, इस तरह की परेशानी से आम आदमी जूझता था, इसे डिजिटल करके ठीक किया जा सकता था। वही किया है।
सवाल- तो क्या अब फर्जीवाड़ा नहीं होगा?
जवाब – बीते डेढ़ साल में सुगम एप के जरिए 2 लाख से ज्यादा रजिस्ट्री हुई है। इसमें जमीन खरीदने बेचने वाले को प्रॉपर्टी पर खड़ा करके तस्वीर ली जाती है, ये तस्वीर लैंड के रिकॉर्ड के साथ जुड़ती है। जमीन के लांगीट्यूड और लैटीट्यूड के साथ। अब कोई उस जमीन के दोबारा बेचे, गड़बड़ करे तो एप से ट्रेस हो जाता है। पहले ऐसा कोई सिस्टम नहीं था।
रायपुर शहर के चारों तरफ जमीन खरीदने बेचने की अरबों इंडस्ट्री की तरह रियल स्टेट बिजनेस मॉड्यूल काम करता है।
रायपुर शहर के चारों तरफ जमीन खरीदने बेचने की अरबों इंडस्ट्री की तरह रियल स्टेट बिजनेस मॉड्यूल काम करता है।
सवाल- एक ही जमीन की कई बार रजिस्ट्री कैसे रुकेगी?
जवाब- अब लैंड को आधार से लिंक किया जा रहा है। पहले ये होता था कि श्याम नाम के आदमी की जमीन को बेचने के लिए फर्जी आधार लेकर कोई भी श्याम नाम का आदमी आता था, रजिस्ट्री हो जाती थी।
असल श्याम को पता ही नहीं होता था कि उसकी जमीन बिक गई। अब कोई जमीन बेचने आएगा तो उसके फिंगर प्रिंट और आंखों की पुतली को लैंड रिकॉर्ड में मौजूद आधार डेटा से टैली किया जाएगा।
सवाल- लैंड की पूरी हिस्ट्री कैसे पता चल सकेगी?
जवाब- अब कोई जमीन खरीदनी है, उसकी हिस्ट्री ऑनलाइन पता चल जाएगी। किसके नाम पर है, कोई लोन तो नहीं। ये सब बातों की डिटेल वॉट्सऐप में मिल जाएगी। लैंड रिकॉर्ड की कॉपी वॉट्सऐप पर मिल जाएगी। पहले इसके लिए पटवारियों के चक्कर लगाने होते थे। डिजिलॉकर में जमीन के दस्तावेज सुरक्षित रखे जा सकेंगे। भुइंया एप से जमीन की जानकारी मिल जाएगी।
अब तक नामांतरण के लिए तहसील दफ्तर के चक्कर आम आदमी को लगाने पड़ते थे, समय भी अधिक लग जाया करता था। –
अब तक नामांतरण के लिए तहसील दफ्तर के चक्कर आम आदमी को लगाने पड़ते थे, समय भी अधिक लग जाया करता था।
सवाल- नामांतरण के नए सिस्टम से लोगों को कितनी आसानी होगी?
जवाब- आम आदमी रजिस्ट्री करा लेता था, लेकिन नामांतरण के लिए बहुत सारे कार्यालय में भटकना पड़ता था। अब रजिस्ट्री होते ही नामांतरण हो जाएगा, कहीं जाने की जरूरत नहीं है। रजिस्ट्री ऑफिस से ही नामांतरण हो जाने के कागजात मिल जाएंगे।
सवाल- अगर गलत नामांतरण हाे गया तो उसके लिए क्या सिस्टम होगा?
जवाब- हमनें सभी बिंदुओं पर काम किया है। जैसे कोई गलत नामांतरण हो गया तो उसके लिए अपील का सिस्टम भी बना हुआ है। ये सिस्टम देश के तीन राज्यों में पहले से है।
यह सुविधा अभी मात्र आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु राज्यों में ही है। साथ ही हरियाणा में खुद नामांतरण 7 दिन बाद होता है। अगर कहीं कोई छोटा-मोटा बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी तो उस दिशा में भी हमारी आखें-कान खुले हुए हैं।
मंत्री ओपी चौधरी ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया को बदलने में CM साय का सपोर्ट उन्हें मिला और करीब 50 से अधिक मीटिंग्स करके इसे लागू किया गया। – Dainik Bhaskar
मंत्री ओपी चौधरी ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया को बदलने में CM साय का सपोर्ट उन्हें मिला और करीब 50 से अधिक मीटिंग्स करके इसे लागू किया गया।
अब तक ये होता था- अब तक जमीन की खरीदी बिक्री के बाद तहसीलदार के समक्ष नामांतरण के लिए आवेदन पेश करना पड़ता था। तहसीलदार के कोर्ट से आगे की प्रक्रिया पूरी की जाती थी। इससे जमीन के फर्जीवाड़ा की आशंका बनी रहती है।
इसके अलावा नामांतरण की प्रक्रिया लंबित रहने के कारण भूमि स्वामियों खासकर किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। बंटवारे के बाद नामांतरण ना होने के कारण उत्तराधिकारी के नाम से ही धान बेचने की मजबूरी रहती थी।
बैंक खाते में भी राशि उनके नाम से ही आता था। इसके चलते विवाद की स्थिति बनी रहती थी। इस पूरे प्रोसेस को जल्द करवाने के लिए 10 से 50 हजार तक रुपए आम आदमी को रिश्वत देनी पड़ती थी, जबकि ये पूरी प्रक्रिया नि:शुल्क है।