महाराष्ट्र में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के मामले सामने आ रहे हैं। पुणे में कई केस सामने आने के बाद सोलापुर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से एक की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग की मानें तो 26 जनवरी तक गुइलेन बैरे सिंड्रोम के 101 एक्टिव मरीज थे। जिसमें पुणे, पिंपरी चिंचवाड़ और कई दूसरे जिले शामिल हैं। GBS होने पर अगर समय रहते मरीज को इलाज न मिल पाए तो स्थिति गंभीर हो सकती है। आइये डॉक्टर से जानते हैं क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम?इसके लक्षण और इलाज क्या है?
दिल्ली के फेमस न्यूरो सर्जन डॉक्टर संजीव कुमार झा के मुताबिक, ‘ गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक एक्यूट डिजीज है। यानि ये अचानक से होने वाली बीमारी है। जिसमें नसों में सूजन आने लगती है। हमारे शरीर में माइलिन शीट नाम की एक लेयर होती है जो नसों के प्रोपर फंक्शनिंग के लिए जरूरी होती है। इस सिंड्रोम के कारण डिमाइलिन होने लगता है। यानि हमारा अपना इन्यून सिस्टम ही नसों की उस प्रोटेक्शन लेयर पर अटैक करने लगता है। जो इम्यून सिस्टम हमें रोगों और बीमारियों से बचाने का काम करता है वही हमारी माइलिंग शीट पर हमला कर देता है। इससे बहुत सारी नसें प्रभावित होती हैं। इसीलिए इसे AIDP भी कहते हैं।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के लक्षण
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के लक्षणों की बात करें तो सबसे पहले पैरों में वीकनेस शुरू होती है। ये कमजोरी शरीर में ऊपर की ओर बढ़ती है। किसी वायरल इंफेक्शन से ये ट्रिगर कर सकती है जैसे सर्दी, खांसी, डायरिया, किसी सर्जरी और वैक्सीन की वजह से ये सिंड्रोम पैदा हो सकता है। जिसके बाद हमारा इम्यून सिस्टम हमारे ही शरीर पर अटैक कर देता है। इसके लक्षण तेजी से फैलते हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि ज्यादातक मामलों में 1 हफ्ते में चीजें स्टेबल हो जाती हैं। लेकिन 20 प्रतिशत केसेज में लोगों को परेशानी बढ़ने लगती है। ऐसे में मरीज को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ जाती है या हार्ट का भी इन्वॉल्वमेंट हो जाता है। इसलिए जरूरत है कि आप हल्के लक्षण महसूस होने पर ही डॉक्टर को दिखाएं।
- मसल्स में कमजोरी
- चलने फिरने में समस्या
- हाथ पैर हिलाने में परेशानी
- रीढ़ की हड्डी में कमजोरी
- चेहरे पर पैरालिसिस के लक्षण
- छाती की मसल्स में कमजोरी
- बोलने और खाने में परेशानी
- सांस लेने में तकलीफ होना
- आखों से कम दिखाई देना
- शरीर का बैलेंस खत्म होना
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का इलाज
चूंकि ये हमारे इम्यून सिस्टम से जुड़ी बामारी है तो इसमें दो तरह की थैरिपीज असरदार साबित होती हैं। एक प्लाज्मा फेरेसिस, इसमें उन एंटीबॉडीज को शरीर से बाहर निकाला जाता है जो हमारे ऊपर ही अटैक कर रही हैं। दूसरा IVIG होता है। इस सिंड्रोम के कारण 5% लोगों की मौत का खतरा रहता है।